Tuesday 13 December 2011

स्पीक एशिया: किसी माई के लाल में हिम्मत नही है जो सूरज को ढक दे......

9 लोगों का परिवार है मेरा । मांजी, बाबूजी, तीन बहनें, दो बच्चे और हम दो पति पत्नी । किराये का मकान है जिसका किराया 5000 रू, बच्चों की स्कूल फीस 3000रू, कार की किश्त 10000रू, कार और मोटरसाईकल का पेट्रोल 7000रू, एल.आई.सी. और पोस्ट ऑफिस में बचत की मासिक किश्त 6000रू, घर का राशन, फल शब्जियां, कपड़े लत्ते और मांजी बाबूजी की दवाईयां इत्यादि 8000रूपये । घर का कुल मासिक खर्च त्र 39,000 एक दिन का 1,300 रूपये ।आज 214 दिन हो गये हैं स्पीक एशिया की खुशी हमसे छीने हुए । 214 दिन से एक फूटी कौड़ी नही आई । 2,78,200 रूपये का 214 दिन का कर्ज और गुस्साये लोगों को जो वापस किये वो 2,40,000 कुल मिलाकर 5,18,200 रूपये का कर्जदार बन गया हूं । रिश्ते नातेदार, दोस्त, स्कूल साथी, पड़ोसी सभी को मैने बड़े गर्व से स्पीक एशियन बना दिया था। सभी बैंक बैलेंस खाली हो चुके हैं और पत्नी के गहने बिक चुके हैं । धीरे धीरे घर के सभी खर्चे कम करने पड़ रहे हैं ।

अपनी कार और मोटर साईकल को रोज बड़े ध्यान से देखता हूं और रोना आता है क्योंकि उनको बेचने का समय आ गया है । अपने बच्चों की तरफ देखता हूँ तो रोना आता है क्योंकि उन्हे भी सस्ते स्कूल में डालने का समय आ गया है । पत्नी की तरफ देखता हूँ तो रोना आता है क्योंकि वो कहती है अब मेरे पास कोई गहना नही बचा है । छोटी बहनों की तरफ देखता हूं तो रोना आता है क्योंकि उनकी विवाह की उम्र हो गयी है । दोस्तों की तरफ देखता हूँ तो रोना आता है जो कहते हैं हमने तो पहले ही कहा था इन चक्करों में मत पड़.... अब भुगत । घर की दीवारों को देखता हूं तो रोना आता है क्योंकि किराये के इस घर को छोड़ने का समय आ गया है । मांजी और बाबूजी की तरफ देखता हूं तो रोना आता है जो कहते हैं कोई बात नही बेटा हम झोपड़ी में रह लेंगे और धीरे धीरे कर्ज भी उतर जाएगा..... दिल छोटा मत कर ।

ये तो 20 लाख लोगों में से सिर्फ मेरी अकेले की कहानी है । न जाने किसके पास क्या क्या परेशानियां होंगी । कौन-कौन कैसे कैसे अपना सामन्जस्य बिठाकर गुजारा कर रहा होगा ।
मेरे मांजी बाबूजी बोलते हैं बेटा दूसरी कम्पनी में काम देख ले । जैसे स्पीक एशिया में तू कमा रहा था वहां भी कमा लेगा । काश..... कि ऐसा हो पाता । लेकिन मेरे बूढ़े मांजी और बाबूजी को क्या पता कि स्पीक एशिया अगर सूरज है तो बाकी कम्पनियां टिमटिमाते हुए दिये हैं जो कभी भी बुझ जाते हैं । सूरज को तो काले बादलों से ढक दिया गया है ताकि दुनियां समझे कि रात हो गयी है । लेकिन ए दुनियां वालों मैं शेर सिंह रावत बब्बर शेर की गर्जना और दहाड़ के साथ कह रहा हूं सुन लो - किसी माई के लाल में हिम्मत नही है जो सूरज को ढक दे.

स्पीक एशिया हम सब की अपनी कम्पनी है और हम ही इसे वापस लायेंगे और भारत में क्रान्ति का आगाज़ करेंगे । जय स्पीक एशिया ।

Article by :
Sher Singh Rawat
Proud Speak Asian

No comments:

Post a Comment